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कील-मुंहासे से बचने के उपाय

कील-मुंहासे प्रत्येक किशोर या किशोरी को अनिवार्य रूप से होते ही हैं, ऐसा नहीं है। जिनको होते हैं, वे मानसिक रूप से दुःखी और शारीरिक रूप से पीड़ित होते हैं और समझ नहीं पाते कि ये कील-मुंहासे क्यों निकल रहे हैं और इनको कैसे ठीक किया जा सकता है।

कील-मुंहासों को आयुर्वेदिक भाषा में 'युवान-पीड़िका' और ऐलोपैथिक भाषा में 'एक्ने' और 'पिम्पल' कहते हैं। किशोर अवस्था की समाप्ति और युवावस्था के प्रारम्भ में चेहरे पर फुंसी के रूप में मुंहासे निकलते हैं और ये पीड़ा पहुंचाते हैं, इसलिए इन्हें 'युवान पीड़िका' कहा गया। शरीर में किसी भी कारण अतिरिक्त रूप से बढ़ी हुई उष्णता मुंहासे पैदा करने में कारण मानी जाती है, इसलिए मुंहासे होने की सम्भावना उनको ज्यादा होती है, जिनके शरीर की तासीर (प्रकृति) गर्म हो। ऐसे बच्चे अगर आहार-विहार भी उष्णता बढ़ाने वाला करते हैं तो उनके शरीर में उष्णता बढ़ती है और कील-मुंहासे निकलने लगते हैं।

कील-मुंहासों के निकलने का समय 13-14 वर्ष की आयु से लेकर 20-22 वर्ष की आयु के मध्य का होता है। इस आयु में उष्णता बढ़ाने वाला आहार-विहार नहीं करना चाहिए। ऐलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मुंहासों का कारण होता है वसा ग्रन्थियों (सिबेसियस ग्लैंड्स) से निकलने वाले स्राव का रुक जाना। यह स्राव त्वचा को स्निग्ध रखने के लिए रोम छिद्रों से निकलता रहता है। यदि यह रुक जाए तो फुंसी के रूप में त्वचा के नीचे इकट्ठा हो जाता है और कठोर हो जाने पर मुंहासा बन जाता है। इसे 'एक्ने वल्गेरिस' कहते हैं। इसमें पस पड़ जाए तो इसे कील यानी पिम्पल कहते हैं। पस निकल जाने पर ही यह ठीक होते हैं।

साधारण स्थिति में ये निकलते और ठीक होते रहते हैं पर असाधारण और गम्भीर स्थिति में बहुत दिनों तक बने रहते हैं। चेहरे की त्वचा को कुरूप कर देते हैं। शरीर में एण्ड्रोजन नामक पुरुष हार्मोन की मात्रा सामान्य से ज्यादा हो जाने का भी सम्बन्ध इस व्याधि से होता है। आनुवंशिक प्रभाव भी इसमें कारण होता है।

कारण

तेज मसालेदार, तले हुए, उष्ण प्रकृति वाले पदार्थों का अधिक सेवन करने, रात को देर तक जागने, सुबह देर तक सोए रहने, देर से शौच व स्नान करने, शाम को शौच न जाने, निरंतर कब्ज बनी रहने, कामुक विचार करने, ईर्षा व क्रोध करने, स्वभाव में गर्मी व चिड़चिड़ापन रखने आदि कारणों से शरीर में ऊष्णता बढ़ती है और तैलीय वसा के स्राव में रुकावट पैदा होती है, जिससे कील-मुंहासे निकलने लगते हैं।

सावधानी

हलका, सुपाच्य और सादा आहार पथ्य है, अधिक शाक-सब्जी का सेवन करना, अधिक पानी पीना, शीतल व तरावट वाले पदार्थों का सेवन करना पथ्य है। तेज मिर्च-मसालेदार, तले हुए, मांसाहारी पदार्थों तथा मादक द्रव्यों का सेवन करना अपथ्य है।

घरेलू उपचार

  1. गाय के ताजे दूध में एक चम्मच चिरौंजी पीसकर इसका लेप चेहरे पर लगाकर मसलें। सूख जाने पर पानी से धो डालें।
  2. सोहागा 3 ग्राम, चमेली का शुद्ध तेल 1 चम्मच। दोनों को मिलाकर रात को सोते समय चेहरे पर लगाकर मसलें। सुबह बेसन को पानी से गीला कर गाढ़ा-गाढ़ा चेहरे पर लगाकर मसलें और पानी से चेहरा धो डालें।
  3. मसूर की दाल 2 चम्मच लेकर बारीक पीस लें। इसमें थोड़ा सा दूध और घी मिलाकर फेंट लें और पतला-पतला लेप बना लें। इस लेप को मुंहासों पर लगाएं।
  4. शुद्व टंकण और शुक्ति पिष्टी 10-10 ग्राम मिलाकर एक शीशी में भर लें। थोड़ा सा यह पावडर और शहद अच्छी तरह मिलाकर कील-मुंहासों पर लगाएं।
  5. लोध्र, वचा और धनिया, तीनों 50-50 ग्राम खूब बारीक पीसकर शीशी में भर लें। एक चम्मच चूर्ण थोड़े से दूध में मिलाकर लेप बना लें और कील-मुंहासों पर लगाएं। आधा घण्टे बाद पानी से धो डालें।
  6. सफेद सरसों, लोध्र, वचा और सेन्धा नमक 25-25 ग्राम बारीक चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें। एक चम्मच चूर्ण पानी में मिलाकर लेप बना लें और कील-मुंहासों पर लगाएं।
  7. कूठ, प्रियंगु फूल, मजीठ, मसूर, वट वृक्ष की कोंपलें (नरम छोटी पत्तियां), लोध्र, लाल चन्दन, सब 10-10 ग्राम बारीक चूर्ण करके मिला लें। एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इसे कील-मुंहासों पर लगाएं।
  8. साफ पत्थर पर पानी डालकर जायफल घिसकर लेप को कील-मुंहासों पर लगाएं।
  9. वरुण (वरना) की छाल 25 ग्राम लेकर एक गिलास पानी में इतनी देर तक उबालें कि पानी आधा गिलास बचे। लाल चन्दन, काली मिर्च और जायफल, तीनों का पिसा हुआ बारीक चूर्ण 10-10 ग्राम लेकर मिला लें और शीशी में भर लें। कुनकुने गर्म पानी से कील-मुंहासों को धोकर, इस चूर्ण को पानी के साथ मिलाकर गाढ़ा लेप बना लें और कील-मुंहासों पर लगाएं। लेप सूख जाए तब कुनकुने गर्म पानी से धो डालें।
  10. आक (अकौआ या आकड़ा) के पत्तों का दूध और पिसी हल्दी मिलाकर इस लेप को चेहरे के काले दाग, धब्बों, झाइयों, कील-मुंहासों पर लगाएं।
  11. रक्त चंदन, मंजीठ, कूठ, मालकांगनी, बड़ की जटा (अंकुर) और मसूर की दाल, सब 50-50 ग्राम। सबको कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके शीशी में भर लें। रात को एक चम्मच चूर्ण पानी में पीसकर गाढ़ा लेप बनाकर चेहरे पर लगाएं। सूखने लगे तब मसलें और मालिश करते हुए छुड़ाकर कुनकुने गर्म पानी से धो डालें।
इन नुस्खों में से किसी भी एक नुस्खे को नियमित रूप से प्रतिदिन सुबह या रात को सोने से पहले जब फुर्सत हो, कील-मुंहासों पर प्रयोग करें और लाभ होने तक प्रयोग जारी रखें। एक घण्टे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो लिया करें। ये सभी नुस्खे लाभकारी हैं।

चेहरे की त्वचा को उज्ज्वल बनाने में उपयोगी उबटन

चन्द्रप्रभा उबटन : पीली सरसों, चिरौंजी और मसूर की दाल, तीनों 100-100 ग्राम बारीक पीसकर मिला लें और शीशी में भर लें। इस चूर्ण को आवश्यक मात्रा में लेकर दूध में मिलाकर गाढ़ा उबटन बना लें। इसे गाढ़ा-गाढ़ा चेहरे पर लगाएं। जब सूखने लगे तब मसल-मसलकर छुड़ा लें और कुनकुने गर्म पानी से धो लें। यह उबटन चेहरे की त्वचा को कान्तिमय और सुन्दर बनाता है, मुंहासों के दाग-धब्बे मिटाता है और चेहरे पर रौनक लाता है। यह योग बना बनाया बाजार में भी मिलता है।

चन्द्रमुखी लेप : लाल चन्दन, अगर, लोध्र, मंजीठ, कूठ, खस और सुगन्धबाला, सबको अलग-अलग कूट-पीसकर 100-100 ग्राम चूर्ण करके बारीक छन्नी से छानकर अलग-अलग शीशियों में भरकर रखें। लेप तैयार करने के लिए, प्रत्येक चूर्ण आधा-आधा चम्मच मात्रा में लेकर मिला लें और सिल पर रखकर पानी का छींटा देते हुए पीसकर गाढ़ी लुगदी बना लें। एक चम्मच दूध में केसर की 1-2 पंख़ुडी डालकर इतनी घोंटें कि केसर दूध में घुल जाए। यह दूध लुगदी में मिलाकर फेंट लगाएं। 5-6 बूंद गुलाबजल और नीबू के रस की 3-4 बूंद टपकाकर फेंट लगाएं। बस, चन्द्रमुखी लेप तैयार है।
लाभ : यह चन्द्रमुखी लेप चेहरे को सुन्दर बनाने वाला है। इस लेप को प्रतिदिन फुर्सत के वक्त लगाकर मसलें और सूखनें दें। यह लेप अच्छे से अच्छे सौन्दर्य प्रसाधन से टक्कर लेने वाला है। कुछ दिनों तक लगातार प्रयोग करने के बाद प्रति सप्ताह 2 या 3 बार प्रयोग करने लगें।

किंशुकादि तेल : पलाश के फूल, लाल चन्दन, लाख, मजीठ, मुलहठी, कुसुम, खस, पद्माख, नीलकमल, बड़ की जटा, पाकड़की मूल, कमल, केसर, मेहंदी, हल्दी, दारुहल्दी और अनंत मूल, सब 16 द्रव्य 50-50 ग्राम। सबको मोटा-मोटा कूटकर सवा तीन लीटर पानी में डालकर काढ़ा करें। जब चौथाई पनी बचे, तब उतारकर छान लें। अब इसमें 200 ग्राम तिल तेल, 400 ग्राम बकरी का दूध डालकर इसमें 10-10 ग्राम मजीठ, मुलहठी, लाख, पतंग और केसर की लुगदी बनाकर डाल दें। इसे मंदी आग पर तब तक पकाएं जब तक सिर्फ तेल बचे, तब उतारकर छान लें और शीशी में भर लें।
लाभ : सुबह और रात को सोते समय इस तेल को जहां-जहां कील-मुंहासे, झाई, दाग या धब्बे हों, वहां लगाकर अंगुली से थोड़ी देर मसलना चाहिए। थोड़े दिनों में चेहरा बिलकुल साफ और बेदाग हो जाएगा। यह बना बनाया बाजार में इसी नाम से मिलता है।

सेवन करने वाली औषधियां

माणिक्य रस (हरताल) 10 ग्राम, ताप्यादि लौह 5 ग्राम, पंचनिम्ब चूर्ण 20 ग्राम, गंधक रसायन (64 भावना) 20 ग्राम, प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम और गिलोय सत्व 10 ग्राम। सबको मिलाकर 60 पुड़िया बना लें। सुबह, दोपहर, शाम को 1-1 पुड़िया शहद में मिलाकर चाट लें। आरोग्यवर्द्धिनी वटी स्पेशल नं. 1 2-2 गोली भोजन के बाद पानी के साथ लें। इसी पानी में बैद्यनाथ का सुरक्ता स्ट्रांग या डी.के. साण्डू ब्रदर्स का हिमोक्लीन 2-2 चम्मच डाल लेना चाहिए। रात को सोते समय एक कप पानी में एक चम्मच साफी (हमदर्द) डालकर पीना चाहिए।

यदि कब्ज रहता हो तो सोने से पहले एक चम्मच 'कब्जीना चूर्ण' एक कप कुनकुने गर्म पानी के साथ पी लेना चाहिए। इस चूर्ण का प्रयोग आवश्यकता पड़ने पर ही करना चाहिए, नियमित रूप से नहीं।



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